मेरी प्रथम रचना (1993)
न जाने क्यों ?
मुझे
अपने चारों ओर
लग रहा है
एक
शून्य सा बिखरा
मानो
एक हलचल के बाद
ठहर गया हो
जीवन जैसे.......
न जाने क्यों ?
लग रहा है
जैसे
सूर्य जा रहा है
अन्धेरे में
अपनी छवि बनाकर
करने कहीं और
उजाला
खबर नहीं
आएगा भी वह
उजाला करने यहाँ
करके अन्धेरा
जो चला गया है
कहीं और जहाँ ......
फिर भी
न जाने क्यों ?
दिल में
एतबार है
उसका इंतजार है
लगता है
वह आएगा
रोशनी के साथ
हमारे जीवन को
फिर से जगमगाएगा !!
सु..मन
सु..मन
suman , ise padhkar kuch ruk sa gaya hai ji..kya kahun..amazing words.. bahut der se padhraha hoon ..
जवाब देंहटाएंतथास्तु और साथ में आमीन...
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