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सोमवार, 15 मार्च 2010

हसरत-ए-मंजिल

हसरत-ए-मंजिल












न मैं बदला
न तुम बदली
न ही बदली
हसरत-ए-मंजिल
फिर क्यूं कहते हैं सभी
कि बदला सा सब नज़र आता है
शमा छुपा देती है
शब-ए-गम के
अंधियारे को
वो समझते हैं
कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं ...............!!


सु..मन 

20 टिप्‍पणियां:

  1. शब-ए-गम के..अंधियारे को...वो समझते हैं
    कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं ....
    खूबसूरत नज़्म...लफ़्ज़ों का इंतख़ाब पुरअसर.
    मुबारकबाद.

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  2. वो समझते है
    कि हम चिरागों के नशेमन मे जिया करते हैं ----
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. mujhe esa lagta he ki kcuh he jo choot gya.
    adhuri-2 si reh gayi rachna.

    जवाब देंहटाएं
  4. शमा छुपा देती है
    शब-ए-गम के अंधियारे को .....वाह .....!!

    और वो समझते रहे जलना तो उसकी आदत है ......बहुत खूब .....!!

    जवाब देंहटाएं
  5. वो समझते है कि हम चरागो के नशेमन मे जिया करते है... क्या बात है..वाह

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  6. आपके शब्दों की बुनावट औरों से हट के है लेकिन कमाल है कि फिर लगती अपनी सी ही है..

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह.....आप तो सच में मीत ही हैं, प्यार की लहरें यहाँ कुछ कहती हैं

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  8. एकाकीपन और भाव खुलकर सामने आये हैं.

    पहली बार इस ब्लॉग पर आया... अच्छा लगा.

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  9. वो समझते हैं कि हम चिरागों के नशेमन में जीते हैं....वाह...बहुत खूबसूरत ...आपके ब्लॉग पर आना सफल हो गया....बधाई...

    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया

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  10. बहुत खूब !!!
    कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
    http://qatraqatra.yatishjain.com/

    जवाब देंहटाएं
  11. वो समझते है
    कि हम चिरागों के नशेमन मे जिया करते हैं ----
    वाह जी वाह ..क्या लिखा है
    पहली बार आपको पढ़ा ..लेकिन अफसोश ......की इतनी देर कर दी हमने .

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  12. achi post lagi

    pad kar man ko shanti mili

    http://kavyawani.blogspot.com/

    SHEKHAR KUMAWAT

    जवाब देंहटाएं

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