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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

अंतर्द्वन्द

                                 

                                            


                                      अन्दर जो पलता है , आँखों से बहता है ।

                           बेजुबान है मगर , फिर भी कुछ कहता है ।
                      
                                      नहीं रखता कोई बन्धन , पर जकड़े रखता है ।

                           मन की बातों को , खामोशी से तोलता रहता है ।
                      
                                      ये है ‘अंतर्द्वन्द’ , जो चुपचाप चलता रहता है !!

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत चुने हुए शब्दों में अंतर्द्वंद को बताया......

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  2. yah antardwand har raaste aata hai, per aatmsat ker hum samadhan nikalte hain.....mausam badalta hai

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  3. अन्तर्द्वन्द... अच्छी पंक्तियां...

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  4. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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  5. बहुत सुन्दर रचना है सुमन जी ! बधाई !

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  6. bahut hi khubsurat rachna....
    humse rubaroo karaane ke liye dhanyawaad......

    जवाब देंहटाएं
  7. bahut hi khubsurat rachna....
    humse rubaroo karaane ke liye dhanyawaad......

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  8. अच्छी रचना .....सत्य भी

    http://athaah.blogspot.com/2010/04/blog-post_29.html

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  9. नफरत थी हमसे तो इज़हार क्यूँ किया,
    देना ही था ज़हर फिर प्यार क्यूँ किया,

    देकर ज़हर कहते हें कि पीना ही होगा,
    पी गए ज़हर तो कहते हें जीना ही होगा..!

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  10. बहुत कम शब्दों में गहरी बात कहना आसान नहीं होता...
    लेकिन आप कहने में सक्षम हुई हैं...
    आपकी लेखनी सफल हुई है...और एक सफल कविता का सृजन हुआ है
    बधाई आपको...ह्रदय से..

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  11. मन के इस द्वंद को ही तो संभालना मुश्किल होता है ..... सार्थक लिखा है ...

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  12. बहुत ही शानदार अभिवयक्ति ..

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  13. suman ji pehli baar apko padha...bahut acchha likhti hain aap.antardwand ko acchhe se paribhashit karti apki rachna acchhi lagi.

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  14. सुन्दर भाव पिरो दिए हैं आपने अपने लफ़्ज़ों में ...बहुत बढ़िया

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  15. yun hi likhte rahein...
    -----------------------------------
    mere blog mein is baar...
    जाने क्यूँ उदास है मन....
    jaroora aayein
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  16. कविता में हमारी भी रूचि हैं | अच्छी कवितओं की खोज में हम यहाँ तक आ पहुँचे आज|
    कम शब्दों का प्रयोग कर आपने अंतर्द्वंद को काफी अच्छे से उभरा हैं|
    आपकी इस लेखनी ने हमें प्रेरित कर रही हैं कुछ लिखने को| :)

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  17. वाकई एक मनो- स्थिति का सटीक वर्णन है .
    पर वहुत सच तो यह है अंतर्द्वंद नकारात्मक होते है.
    ये स्थिति तब ही बनती है जब हम वहुत अन्दर छिपी किसी आवाज से रूबरू होने में असमर्थ साबित होते है
    और परिस्थितियों के आधार पर अपने आप को ढालने पर मजबूर होते है

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  18. कविता का भाव पक्ष बढ़िया लगा

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