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शनिवार, 3 जुलाई 2010

बरसात

बरसात जब होले होले दस्तक देने लगती है तो इस धरा का जर्रा जर्रा महक उठता है यूं लगता है कि नवजीवन का संचार हुआ हो ।मन मचल उठता है कुछ लिखने को.........

बरसात



घना फैला कोहरा
कज़रारी सी रात
भीगे हुए बादल लेकर
फिर आई है ‘बरसात’;


   अनछुई सी कली है मह्की
   बारिश की बूंद उसपे है चहकी
   भंवरा है करता उसपे गुंजन
     ये जहाँ जैसे बन गया है मधुवन;


     रस की फुहार से तृप्त हुआ मन
     उमंग से जैसे भर गया हो जीवन
    ’बरसात’ है ये इस कदर सुहानी
          जिंदगी जिससे हो गई है रूमानी !!

                                                                                      
                                                                                                     सुमन 'मीत' 

21 टिप्‍पणियां:

  1. बारिश आएगी तो ये पंक्तियां तो आएंगी हीं....वैसे भी मन तो बावरा होता है। लगता है बरसात कैसी होती है ये भूल सा गया हूं। चलिए दिल्ली मे इंतजार है मानसून का फुहारों का। शायद इस बार बरसात फिर से जी जाए...अपने अंदर...

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  2. खूबसूरत अभिव्यक्ति...हलकी हलकी फुहारों जैसी

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  3. आपकी कलियाँ यूँ ही बरसात में मुस्काती रहे ......

    खूबसूरत अभिव्यक्ति....!!

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  4. बूँदें तो दिल को महका देती हैं ..... सुंदर रचना है ... बरसात का आगमन शुभ हो ...

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  5. एक चादर, तनिक झीनी, प्रकृति ने लपेट ली,
    मुझे शर्माती लगे वो, लोग बारिश कह रहे ।

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  6. bahut umda rachna hai, apke blog par pehli baar ana hua, bansant bahar ki tarah kafi bhara pura blog hai with great positive vibes..

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  7. बरसात की तरह ताज़गी से भरती सुन्दर रचना..

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