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गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

तेरे बगैर ............

अहसास ,संवेदनाएं सिर्फ मानव हृदय में ही नहीं पनपती अपितू हर उस जगह में समा जाती है जिससे हम जुड़े होते हैं फिर चाहे वो हमारा घर हो या हर वो जगह जो हमसे जुड़ी हो 1संवेदनाएं सभी में हैं बात सिर्फ महसूस करने की है जुड़ाव की है 1जैसे हमें अनुभूति होती है अपने घर व किसी स्थान के प्रति वैसे ही ये तथाकथित निर्जीव चीजें हमारे प्रति संवेदनशील होती हैं 1जब किसी परिवार का सदस्य कहीं चला जाता है तो सबको उसकी कमी ख़लती है वैसे ही घर व उससे जुड़ी चीजें ,जगह भी उसकी कमी को महसूस करते हैं बस बयां नहीं कर पाते अपने अहसास को सिर्फ तकते रहते हैं निशब्द .........अनजान चेहरों को कि शायद कोई उनकी संवेदनाओं को पढ़ सके..........1कुछ समय पहले किसी के जाने से उस जगह के अधूरेपन को जाना मैनें , बस उसका हर कोना ये कहता महसूस होता था ......................







तेरे बगैर............


मेरे मेहरबां
मुड़ के देख ज़रा
कैसी बेज़ारी से
गुजरता है
मेरा हर लम्हा
तेरे बगैर.....................

तुम थे – 2
तो रोशन था
मेरे ज़र्रे-ज़र्रे में
सकूं का दिया
अब तू नहीं तो – 2
जलता है
मेरा हर कतरा
गम के दिये में
तेरे बगैर.........................


तुम थे – 2
तो महकती थी
तेरी खुशबू से
मेरी फुलवारी
अब तू नहीं तो – 2
सिमट गई है
मेरी हर डाली
यादों की परछाई में
तेरे बगैर....................


तुम थे तो मैं था – 2
मेरे होने का था
कुछ सबब
सींच कर अपने प्यार से
बनाया था ये महल
अब तू नहीं तो – 2
टूट कर बिखर गया हूँ
इक मकां सा बन गया हूँ
तेरे बगैर...............
तेरे बगैर...................


                                              सु..मन 
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