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शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

जिन्दगी : बस यूँ ही
















     1

जिन्दगी की खुशियाँ
दामन में नहीं सिमटती
ऐ मौत ! आ
तुझे गले लगा लूँ...........


    2

जिन्दगी एक काम कर
मेरी कब्र पर
थोड़ा सकून रख दे
कि मर कर
जी लूँ ज़रा..........
   


  3
 
जिन्दगी दे दे मुझे
चन्द टूटे ख़्वाब
कुछ कड़वी यादें
कि जीने का
कुछ सामान कर लूँ........




                                                                            सु..मन 

30 टिप्‍पणियां:

  1. मर कर जी लूं जरा...वाह!! सुभान अल्लाह!! क्या बात है!! गहरी!!

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  2. सुमन जी
    ये भाव सामान्यत: घोर नैराश्य से जनित हैं
    पर भाव है कविता बन ही जाते हैं. सच मैने भी कई बार इसे महसूस किया

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  3. वाह जी जबाब नही आप की गजल का, बहुत खुब धन्यवाद

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  4. जिन्दगी को परिभाषित करते हुए सुन्दर शब्दचित्र!

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  5. तीनो रचनायें दिल मो छू गयी। मगर ज़ुन्दगी सकून देना जानती होती तो ज़िन्दा रहते ही दे देती। शुभकामनायें।

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  6. hmmmmm bahut khooob swagat hai ....likhte rahe....mujhe antim pangtiya achha lagi...

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  7. मर कर भी चैन न आया तो ? बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  8. क्या खुब लिखा है आपने...बहुत सुंदर।

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  9. वाह बहुत सुंदर.
    मर्मस्पर्शी रचना बधाई .

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  10. बहुत ही संवेदनशील प्रस्तुति...बहुत संदुर

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  11. मर्मस्पर्शी क्षणिकायें ! बहुत सुन्दर !

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  12. क्षणिकाएं
    उदास होते हुए भी
    मन को सुकून बख्शती हैं.....
    अभिवादन .

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  13. गम है तो मजा है जीने का ...
    वर्ना खली कोई कमरा हो जैसे !
    जिंदगी से क्या क्या मांग लिया आपने !

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  14. माशा अल्लाह.
    क्या लिखा है आपने.
    सलाम

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  15. आख़िरी पंक्ति बहुत पसंद आई
    और एक शेर भी याद आ गया
    चला जाता हूँ हंसता खेलता दौरे-हवादिस से
    अगर आसानियाँ हो ज़िंदगी दुश्वार हो जाए

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  16. समेट कर इतना प्यार दामन में, कैसे जी पाओगे 'मन'... जीने के लिए थोड़ा सा दर्द उधार ले लो..

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  17. हृदय स्पर्शी, मर्म स्पर्शी..... बहुत खूब अंदाज़े-ब्यान है दर्द का.......

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  18. amazing lines, bahut der se padh raha hoon , man me gahri utarti hui.. man thoda ashaant hua , ab shaant ho gaya hai .. thanks for the philosphical touch.

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  19. वाह जनाब वाह
    क्या गागर में सागर समेटा है
    आखिरी वाली ज्यादा ही अच्छी लगी मुझे तो

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