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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

वटवृक्ष पत्रिका पर प्रकाशित मेरी रचना

मैं आभारी हूँ रविन्द्र प्रभात जी और वटवृक्ष की पूरी टीम की जिन्होंने मेरी रचना को पत्रिका में स्थान दिया .....
तेरा अहसास मन मेरे

तेरा अहसास मन मेरे
मेरे वजूद को
सम्पूर्ण बना देता है
और मैं
उस अहसास के
दायरे में सिमटी
बेतस लता सी
लिपट जाती हूँ
तुम्हारे स्वप्निल स्वरूप से
तब मेरा वजूद
पा लेता है
एक नया स्वरूप
उस तरंग सा
जो उभर आती है
शांत जल में
सूर्य की पहली किरण से
झिलमिलाती है ज्यूँ
हरी दूब में
ओस की नन्ही बूंद
तेरी वो खुली बाहें
मुझे समा लेती हैं
जब अपने आगोश में
तो मन मेरे
मेरा होना
सार्थक हो जाता है
मेरा अस्तित्व
पूर्णता पा जाता है
और उस समर्पण से
अभिभूत हो
मेरी रूह के जर्रे जर्रे से
तेरी खुशबू आने लगती है
महक जाता है
मेरा रोम रोम
पुलकित हो उठता है
एक सुमन सा
तेरे अहसास का
ये दायरा
पहचान करा देता है
मेरी , मेरे वजूद से
और मेरे शब्दों को
आकार दे देता है
मेरी कल्पना को
मूरत दे देता है
मैं उड़ने लगती हूँ
स्वछ्न्द गगन में
उन्मुक्त तुम संग
निर्भीक ,निडर
उस पंछी समान
जिसकी उड़ान में
कोई बन्धन नहीं
बस हर तरफ
राहें ही राहें हों
मन मेरे
तेरा ये अहसास
मुझे खुद से मिला देता है
मुझे जीना सिखा देता है
मन मेरे.....
मन मेरे...... !!
                                      सु-मन 

17 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कुष्ट रचना....बहुत बहुत बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  2. ............बहुत बहुत बधाई

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. वटवृक्ष में प्रकाशन अच्छे लेखन का समुचित सम्मान है...
    बहुत बहुत बधाई सुमन जी.

    जवाब देंहटाएं
  4. suman ji
    bahut bahut badhai swikaren aur aapki rachna to prakashit honi hi thi itna jabrdast jo likha hai aapne.
    sachmuch pyar ka athah sagar bhar diya hai aapne apni rachna me
    punah badhai---------
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर भाव लिये कसमसाती सी रचना.....शुभकामनायें.....

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर अभिव्यक्ति
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं

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