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सोमवार, 25 जून 2012

एक लम्हा
















कुछ अरसा पहले
एक लम्हा
ना जाने कहाँ से
उड़ कर आ गिरा
मेरी हथेली पे
कुछ अलग सा
स्पर्श था उसका
यूँ लगा... मानो !
जिंदगी ने आकर
थाम लिया हो हाथ जैसे
और मैंने उस हथेली पर
रख कर दूसरी हथेली
उसे सहेज कर रख लिया |

शायद ये दबी सी ख्वाहिश थी
जिंदगी जीने की.....

वक्त बदलता रहा करवटें
और मैं
उस लम्हे से होकर गुजरती रही
.
.
वहम था शायद !
मेरा उस लम्हे से होकर गुजरना ..

आज, अरसे बाद
वो लम्हा
मांगे है रिहाई मुझसे
अनचाहे ही मैंने
हटा ली हथेली अपनी
कर दिया रिहा उसको
अपने जज्बात की कैद से |

पर ..आज भी उसका स्पर्श
बावस्ता है मेरी इस हथेली पर
दौड रहा है रगों में लहू के संग

यही है जीने का सामान मेरा
यही जिंदगी के खलिश भी है ....!!


सु-मन 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब! बीते लम्हे कहीं नहीं जाते, समा जाते हैं हमारे मन में, व्यक्तित्व में!

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  2. जिंदगी को कुछ तो बहाना चाहिए

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  3. पीछे मुड़कर देखिये तो वे लम्हें जीवन के आधारभूत हो जाते हैं।

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  4. बहुत भाव पूर्ण रचना ...कुछ एहसास हमेश बने रहते हैं

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  5. दर्द इस लिये ही छोड जाते हैं जाने वाले ताकि उनके सहारे3 ही इन्न्सान ज़िन्दा रह सके। मार्मिक अभिव्यक्ति।

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  6. सु- मन से लिखी कविता मन को छू गई जी । बहुत ही सुंदर सरल कविता । मन को मोहने वाले भाव । शुभकामनाएं

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  7. ज़िंदगी एक रूप अनेक....गुजरे हुए लम्हे या बीता हुआ वक्त हमेशा ही अपनी कोई अमिट छाप छोड़ ही जाता है मन पर मगर वो कहते है न वक्त को कभी मुट्ठी में पकड़कर नहीं रखना चाहिए वरना जिस दिन मुट्टी खुलेगी खाली ही मिलेगी।

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
    चर्चामंच पर की जायेगी

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  9. बहुत ही सुंदर ...सुंदर एह्सासों मे पिरोयी कोमल सी रचना ...बहुत अच्छी लगी ...
    शुभकामनायें.

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  10. वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  11. गीत याद आ जाता है किसी फिल्म का | कसक नहीं जाने वाली !!

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