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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शब्द से ख़ामोशी तक ...अनकहा मन का


ख़ामोशी में बहुत कुछ है अब ...सुनने को ....वो भी जो तब नहीं सुन पाई थी .....जब शब्द बात करते थे ....अब चारों पहर बस ख़ामोशी ही गुनगुनाती है हमारे बीच ...और राह तकते शब्द थक कर सो जाते हैं गहरी नींद ......!!

(शब्दों का न होना सालता है कभी कभी ....पर ख़ामोशी मन को बांधे है ...दोनों एक दूसरे के पूरक हैं शायद)



सु-मन 

14 टिप्‍पणियां:

  1. एक रोके रहिये समय को, किनारे आकर लग जायेंगे प्रवाह के दोनों ओर..

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  2. कभी कभी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है सुमन जी |
    मेरे ब्लॉग में पधारें और जुड़ें |
    मेरा काव्य-पिटारा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया प्रदीप जी ...
      आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा

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    2. प्रदीप जी ..एक बात की जानकारी चाहती हूँ कि आपने ब्लॉग का लिंक कैसे डाला टिप्पणी में

      हटाएं
  3. ख़ामोशी की अपनी जुबाँ होती है ....और उसको समझते है अहसास !!!

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  4. ख़ामोशी कभी-कभी शब्दों से ज्यादा प्रभावशाली होती है

    जवाब देंहटाएं
  5. mujhe ras aati hai khamosiya,bin kahe jindgi ko jalati-bujhati hasati-rulati.........bahut sundar aur prastuti

    जवाब देंहटाएं

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