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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

सीले से लफ्ज़























यूँ ही दरवाजे पे  दी दस्तक

कुछ बीते लम्हों ने

खोला .....तो देखा

कुछ सीले सीले से लफ्ज़

मेहमां बनकर

खड़े हैं सामने मेरे

समेट कर हथेली पर

ले आई मैं उनको अन्दर

यादों के सरहाने रख दिया है अब उनको भी.......!!


सु-मन 
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