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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शब्द से ख़ामोशी तक ...अनकहा मन का


ख़ामोशी में बहुत कुछ है अब ...सुनने को ....वो भी जो तब नहीं सुन पाई थी .....जब शब्द बात करते थे ....अब चारों पहर बस ख़ामोशी ही गुनगुनाती है हमारे बीच ...और राह तकते शब्द थक कर सो जाते हैं गहरी नींद ......!!

(शब्दों का न होना सालता है कभी कभी ....पर ख़ामोशी मन को बांधे है ...दोनों एक दूसरे के पूरक हैं शायद)



सु-मन 

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