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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

करवाचौथ ..करवे बिन











(माँ की नज़र से पूज्य बाबू जी को समर्पित )

जानती हूँ
तुम अब नहीं हो
न ही रची है
मेरे हाथों में
तेरे नाम की मेहंदी
सुर्ख लाल चूड़ियों की खनक
जुदा है अब मेरे वजूद से
चाँद सा टीका
अब दूर छिटक गया है
झिलमिल सितारों वाली चुनरी
रंगरेज़ ने कर दी है
स्याह काली
नहीं सजाऊँगी मैं अब
करवे की थाल ।

पर ..सुनो !
रात, जब
चाँद निकलेगा ना
तुम उसकी खिड़की से झांकना
मैं मन के दर्पण में
देख लूंगी तुम्हारा अक्स
हाँ ,नहीं कर पाऊँगी
मंगल कामना
तुम्हारी लम्बी उम्र की
कि अब तुम देह बंधन से परे
जा उस लोक में
कर रहे मेरा इंतजार
और इस देह बंधन में बंधी
मैं कर रही तुमको नमन !!



सु..मन

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

उम्र पार की वो औरत











इक पड़ाव पर ठहर कर
अपनी सोच को कर जुदा
सिमट एक दायरे में
करती स्व का विसर्जन
चलती है एक अलग डगर
उम्र पार की वो औरत |

देह के पिंजर में कैद
उम्र को पल-पल संभालती
वक्त के दर्पण की दरार से
निहारती अपने दो अक्स
ढूंढती है उसमे अपना वजूद
उम्र पार की वो औरत |

नियति के चक्रवात में
बह जाते जब मांग टीका
कलाई से लेते हैं रुखसत
कुछ रंग बिरंगे ख्वाब
दिखती है एक जिन्दा लाश  
उम्र पार की वो औरत |

नए रिश्तों की चकाचौंध में
उपेक्षित हो अपने अंश से
बन जाती एक मेहमान
खुद अपने ही आशियाने में
तकती है मौत की राह
उम्र पार की वो औरत !!


सु..मन




मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

बदला सा सब ..












ना फिज़ा बदली ना शहर बदला 
इस जगह से मेरा ठिकाना बदला 

दो घड़ी रुक ऐ वक्त तू मेरे लिए 
मेरे हिस्से का तेरा पैमाना बदला 

शब ना हो उदास इस कदर तन्हा 
वही है जाम बस मयखाना बदला 

लिखने का सबब नहीं कोई 'मन' 
मेरे लफ्ज़ो अब आशियाना बदला !!



सु..मन 



शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

इक उदास नज़्म











शाम की दहलीज पर
जब उदासी देती है दस्तक
खाली जाम लेकर
दौड़ आते हैं
कुछ लफ्ज़ मेरी ओर
भर देती हूँ
कुछ बेहिसाब से पल
छलकने लगता है भरा जाम
लेती हूँ एक घूँट
गहरी हो जाती है उदासी
बिखर जाते हैं लफ्ज़
बन जाती है
इक उदास नज़्म ....!!


सु..मन 
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