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शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

तब और अब









तब 


हल्का हल्का 

दर्द था 
छोटी छोटी 
ख़्वाहिशें थी ....

गहरा गहरा 

रिश्ता था 
महकी महकी 
आशाएं थी ..... 

भरा भरा 

दरिया था 
प्यासी प्यासी 
बारिशें थी ......














...अब 

अलग अलग 

रास्ता है 
भूली भूली 
यादें हैं .....

टूटा टूटा 

बन्धन है 
गुढ़ी गुढ़ी 
गांठें हैं .....

सूखा सूखा 

सावन है 
भरी भरी 
आँखें हैं ....... !!


सु..मन 

17 टिप्‍पणियां:

  1. भावों की अभिव्यक्ति और शब्दों का चयन बहुत ख़ूब ..सुन्दर रचना.

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  2. सुन्दर शब्द व भाव हैं. कुछ रिश्ते अक्सर दर्द दे जाते हैं...

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  3. Suman जीवन के चक्र के संग घुमते घुमते हम कहाँ पहुँच जाते है पता नहीं चलता हाँ ,पछतावा ज़रूर होता है रिश्तों के बदलते रंग को देख ...... क्यूंकि कुछ रंग ऐसे होते हैं जिनका फीका पड़ना बिलकुल भाता नहीं ....... इन्ही भावों को ख़ूबसूरती से उकेरा तुमने ...... गांठो को लेकर मैंने भी कुछ लिखा था ...पर अभी तक उसे पब्लिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी हूँ ....और शायद 'आकर्षण का सिंद्धांत ' मुझे ऐसे करने से रोकता ही रहेगा ....... यानी दर्द उकेरेंगे तो और दर्द ही मिलेगा ........तो अच्छा होगा खुशियाँ चाहे छोटी हों .....पर उन्हें उभरने का अवसर देना चाहिए :) Echo (गूँज) होके बहुत सी खुशियाँ हमारे पास आएँगी ........पूनम माटिया 'पूनम' 

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    उत्तर
    1. पूनम जी fb frnd की एक कविता पढ़कर जो मन में जो उपजा उसी को शब्दों में ढाल दिया ।अक्सर होता है कि कहीं कुछ पढू तो शब्दों में गति आ जाती है और तब ये नहीं सोचती गम पर लिखूं या ख़ुशी पर ।शब्द बस उतरते जातें हैं पन्नों पर । आपकी बात भी कुछ मायनों में सही है कि ख़ुशी लिखोगे तो पाठक के चेहरे पर भी ख़ुशी बिखरेगी ।पर कभी कभी दर्द पढ़ने पर आह के साथ वाह भी निकल जाती है । :)
      आपकी टिप्पणी से positiveness मिली ..जल्द ही ख़ुशी वाली लिखूंगी और आपको पढ़ाऊँगी ।फिर ढेर सारी ख़ुशी आएगी echo होकर ..है ना ।

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  4. समय के साथ सब कुछ बदल गया है...बहुत भावपूर्ण रचना...

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