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बुधवार, 23 जुलाई 2014

उसने कहा था












उसने कहा था 

बुत के समान 
जिन्दा लाश बनकर 
कब तक ढोते रहोगे 
जिंदगी का कफ़न 
आओ !
जड़ को चेतन में बदल कर 
फूलों के जहाँ में 
जीना सीखा दूँ 
चलो ! 
मरीचिका के आईने को 
पार कर देखो 
दर्पण के पहलू में 
अनेक बिम्ब दीखते हैं 
संभल कर पोंछ दो 
गर्द की परत 
निखर आयेगी हर छवि 
अंतस की गहराई में 
करो और देखो 
जिंदगी के दामन में 
हज़ारों रंग बिखरे हैं 
तुम्हारे लिए ..!!


सु-मन 

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