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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

मंगलवास
















माँ !
जलाया है मैंने
आस्था की डोरी से
अखंड दीप
तुम्हारे चरणों में
किया है अर्पित
मुखरित सुमन
मस्तक पर लगा कर
चन्दन टीका
किया अभिषेक तुम्हारा
ओढ़ाई तारों भरी चुनरी
रोपा है मैंने
आस का बीज
हाथ जोड़
किया तुम्हारा वन्दन
पढ़ा देवी पाठ
की क्षमा प्रार्थना
फल नैवेद्य कर अर्पण
किया तुम्हारा गुणगान
हे माँ !
कर अनुग्रह मुझपर
करना फलीभूत मेरे उपवास 
रखना सदा अपना मंगलवास !!


सु-मन 
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