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शनिवार, 21 नवंबर 2015

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (५)

                     पहली बार जब जिन्दगी ने दरवाजा खोला था उस पल क्या महसूस किया होगा इस एहसास से अनभिज्ञ होते हैं हम | धीरे धीरे दरवाजे को लाँघ कर जब जिंदगी के आशियाने में प्रवेश करते हैं तो दुख सुख के कमरे मिलते हैं जिनकी चार दीवारी को हम अपनी इच्छाओं के रंग पोत देते हैं | उन दीवारों पर होती हैं हमारे दिल की ओर झाँकती खिड़कियाँ जो वक़्त के साथ साथ कभी खुली और बंद दिखती हैं |
दरअसल , खिड़कियाँ अनवरत आती जाती हमारी साँसें हैं ...थक जाने वाली जिन्दगी की अनथक साँसें ..बेहिसाब साँसें !!

सु-मन 

बुधवार, 11 नवंबर 2015

आओ दीप जलायें















आओ दीप जलायें 
देहरी में मंगल का 
आँगन में सुख का 
कमरे में शान्ति का 
खिड़की में आस का 
बरामदे में ख़ुशी का 
मंदिर में भक्ति का 
दिल में उमंग का 
प्रेम के हर रंग का 
आओ दीप जलायें 
आओ दीप जलायें !!


दीप पर्व मुबारक ...

सु-मन 

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

दोस्त



                        मिनी ने पक्का सोच लिया था कि अब वो कबीर से कभी बात नहीं करेगी | बात तो क्या कभी मैसेज भी नहीं करेगी | आज सोमवार था मिनी ऑफिस में अपने काम मैं काफी व्यस्त थी | तभी उसे लगा कि कुछ कम्पन हो रही ..पास रखी अलमारी के हिलने की आवाज़ इतनी थी कि ये समझ आ चूका था कि भूकंप के तेज़ झटकों से धरती हिल रही है | थोड़ी देर में सब शांत हो गया फिर सब अपने अपने काम में लग गए पर मिनी का मन शांत नहीं था उसने मोबाइल उठाया , डायलड नम्बर पर नाम था – कबीर |
उस ओर से आवाज़ आई – हैलो
मिनी – हैलो , तुम ठीक हो ना |
कबीर – अरे हाँ ! क्यूँ क्या हुआ | अभी भूकंप आया था | डर गई थी |
मिनी – इसमें डर की क्या बात है | ओह ! सौरी , डिस्टर्ब किया |  तुम्हारा इतना कीमती वक़्त ख़राब किया | वेल्ही तो मैं हूँ |
कबीर – हा हा |
मिनी – यू नेवर टेक मी सिरियस |
कबीर – अच्छा !!
मिनी – मैंने सोचा था नहीं करूँगी बात ..कभी नहीं करूँगी ..दिवाली आने वाली है न ..तब विश भी नहीं करूँगी | मुझे भी तो कितना काम होता है फिर भी वक़्त निकालती हूँ पर तुम तो ओवर बीज़ी पर्सन हो | नहीं करूँगी बात देख लेना |
कबीर – फिर अब क्यूँ किया |
मिनी – पागल जो हूँ |
कबीर – वो तो तुम हो ही मेरी तरह |
मिनी – तुम नहीं हो |
कबीर – और कुछ ?
मिनी – सौरी .. पता नहीं क्यूँ गुस्सा सा है |
कबीर – मुझ पर ?
मिनी – पता नहीं ..खुद पर ..क्योंकि मेरा ही दोष है |
कबीर – क्योंकि मेरा ही दोष है की जगह ‘ मेरा ही दोस्त है ’ बस ये कह दो सब सही जायेगा |
कबीर के इस उत्तर पर उसके पास कोई और सवाल नहीं था | मिनी अब चुप हो गई और उसका मन शांत |

सु-मन 
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