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शनिवार, 21 मई 2016

मेरे जाने के बाद












मेरे जाने के बाद
होती रहेंगी यूँ ही सुबहें
शामें भी गुजरेंगी इसी तरह
रातें कभी अलसाई सी स्याह होगीं
कभी शबनमी चांदनी से भरपूर
खिला करेंगे यूँ ही
ये बेशुमार फूल इस आँगन
कमरा यूँ ही सजा रहेगा
कुछ मामूली और कीमती चीज़ों से
यूँ चलती रहेगी घड़ी टिक-टिक
चलता रहेगा वक़्त अपनी चाल
धड़कता रहेगा दिल सबके सीने में
होती रहेगी साँसों की आवाजाही इसी तरह
कुछ भी तो नहीं बदलता?
एक इंसान के जाने के बाद...

मेरी प्रिय !
मेरे जाने के बाद
तुम भी नहीं बदलोगी
मैं रहूंगी जिन्दा तुम्हारे सृजन के मेरे हर लफ्ज़ में
जीयूँगी हर अधूरी ख्वाहिशें
मेरी डायरी के हर वरक में धड़कती तुम
जब कभी पढ़ी जाओगी
मेरी चाही हुई नेमतों को मिलेगी साँसें
जब कोई लिखे एहसास को आत्मसात कर
मोड़ लेगा उस वरक का किनारा ,फिर पढ़ने को
जी लूँगी उस क्षण
चाही हुई एक मुक्कमल जिंदगी !!
***
जो जीया उसे लिखना आसान नहीं ...जो लिखा उसे जीना । जिंदगी का कविता होना  या कविता का जिंदगी होना जायज़ है या नाजायज़.. नहीं पता । हाँ , हर लिखे लफ्ज़ में जी हुई नाजायज़ साँसों की कर्ज़दार हूँ !!


सु-मन
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