अनगिनत प्रयास के बाद भी
अब तक
'तुम' दूर हो
अछूती हो
और 'मैं'
हर अनचाहे से होकर गुजरता प्रारब्ध ।
एक दिन किसी उस पल
बिना प्रयास
'तुम' चली आओगी
मेरे पास
और बाँध दोगी
श्वास में एक गाँठ ।
तब तुम्हारे आलिंगन में
सो जाऊँगा 'मैं'
गहरी अनजगी नींद !
*****
उनींदी से भरा हूँ 'मैं' , नींदों से भरी हो 'तुम' ।
चली आओ कि दोनों इस भरेपन को अब खाली कर दें !!
सु-मन
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-07-2017) को "तरीक़े तलाश रहा हूँ" (चर्चा अंक 2681) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ,सुन्दर शब्द रचना आभार "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंइंतजार को बड़ी खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है आपने
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर....
जवाब देंहटाएंवाह!!