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शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

तुम और मैं















अनगिनत प्रयास के बाद भी
अब तक
'तुम' दूर हो 
अछूती हो 
और 'मैं' 
हर अनचाहे से होकर गुजरता प्रारब्ध ।

एक दिन किसी उस पल 
बिना प्रयास 
'तुम' चली आओगी
मेरे पास 
और बाँध दोगी 
श्वास में एक गाँठ ।

तब तुम्हारे आलिंगन में 
सो जाऊँगा 'मैं' 
गहरी अनजगी नींद !
*****

उनींदी से भरा हूँ 'मैं' , नींदों से भरी हो 'तुम' । 
चली आओ कि दोनों इस भरेपन को अब खाली कर दें !!

सु-मन 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-07-2017) को "तरीक़े तलाश रहा हूँ" (चर्चा अंक 2681) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ,सुन्दर शब्द रचना आभार "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. इंतजार को बड़ी खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है आपने

    जवाब देंहटाएं

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