15 अगस्त 1947 हमारा प्रथम स्वतंत्रता दिवस...............वो दिवस जिसे सभी आँखें देख पाई न देख सके हमारे शहीद जवान जो अपनी मातृभूमि के लिये हंसते हंसते कुर्बान हो गये । आज हमारे 63वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी’ की यह कविता उन सभी जवानों और उनके परिवार वालों को समर्पित है जिन्होंने आजादी की जंग में अपनों को खोया है...............
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गुँथा जाऊँ,
चाह नहीं , प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के सर पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सर पर
चढ़ूं , भाग्य पर इठलाऊँ ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली !
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने ,
जिस पथ जाएँ वीर अनेक !!
माखनलाल चतुर्वेदी