अहसास
एक अबोध शिशु
माँ के आँचल में
लेता है जब
गहरी नींद
माँ उसको
अपलक निहारती
बलाऐं लेती
महसूस है करती
अपने ममत्व को
वो आगाज़ हूँ मैं .........
विरह में निष्प्राण तन
लौट है आता
चौराहे के छोर से
लिये साथ
अतीत की परछाई
भविष्य की रुसवाई
पथरीली आँखों में
सिवाय तड़प के
कुछ नहीं
वो टूटन हूँ मैं ...........
कोमल हृदय में
देते हैं जब दस्तक
अनकहे शब्द
उलझे विचार
मानसपटल पर
करके द्वन्द
जो उतरता है
लेखनी से पट पर
वो जज़्बात हूँ मैं .........
थकी बूढ़ी आँखें
जीवन की कड़वाहट का
बोझ लिए
सारी रात खंगालती हैं
निद्रा के आशियाने को
या फिर
बाट जोहती हैं
अपने अगले पड़ाव का
वो अभिप्राय हूँ मैं ...........
वो आगाज़ में पनपा
टूटन में बिखरा
जज़्बात में डूबा
अभिप्राय में जन्मा
‘अहसास’ हूँ मैं !!
सुमन ‘मीत’
माँ के आँचल में
लेता है जब
गहरी नींद
माँ उसको
अपलक निहारती
बलाऐं लेती
महसूस है करती
अपने ममत्व को
वो आगाज़ हूँ मैं .........
लौट है आता
चौराहे के छोर से
लिये साथ
अतीत की परछाई
भविष्य की रुसवाई
पथरीली आँखों में
सिवाय तड़प के
कुछ नहीं
वो टूटन हूँ मैं ...........
देते हैं जब दस्तक
अनकहे शब्द
उलझे विचार
मानसपटल पर
करके द्वन्द
जो उतरता है
लेखनी से पट पर
वो जज़्बात हूँ मैं .........
जीवन की कड़वाहट का
बोझ लिए
सारी रात खंगालती हैं
निद्रा के आशियाने को
या फिर
बाट जोहती हैं
अपने अगले पड़ाव का
वो अभिप्राय हूँ मैं ...........
वो आगाज़ में पनपा
टूटन में बिखरा
जज़्बात में डूबा
अभिप्राय में जन्मा
‘अहसास’ हूँ मैं !!
सुमन ‘मीत’