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सोमवार, 1 नवंबर 2010

जीवन राग

कुछ दिनों के बाद इस ब्लॉग को शुरू किये एक साल हो जायेगा ।जब ये सफर शुरू किया तो सोचा भी न था कि आप लोगों का इतना प्यार मिलेगा ......आज न जाने क्यूँ ब्लॉग की अपनी पहली कविता आप सबके साथ साझा करना चाहती हूँ .........

जीवन राग


जीवन राग की तान मस्तानी

समझे न ये मन अभिमानी ;


बंधता नित नव बन्धन में
करता क्रंदन फिर मन ही मन में ;


गिरता संभलता चोट खाता
बावरा मन चलता ही जाता ;


जिस्म से ये रूह के तार
कर देते जब मन को लाचार ;


होता तब इच्छाओं का अर्पण
मन पर ज्यूँ यथार्थ का पदार्पण ;


छंट जाता स्वप्निल कोहरा
दिखता जीवन का स्वरूप दोहरा ;


स्मरण है आती वो तान मस्तानी
न समझा था जिसे ये मन अभिमानी !!



                                                                                 सु..मन