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मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

“प्रकृति के रंग”


बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं....... इस अवसर पर मेरी एक पुरानी कविता डाल रही हूँ ।आशा करती हूँ आप सबको पसन्द आयेगी.....


शाम ढल आई

मेघ की गहराई

नीर बन आई

आसमा की तन्हाई

न किसे भी नज़र आई ;




रातभर ऐसे बरसे मेघ

सींचा हर कोना व खेत

न जाना कोई ये भेद

किसने खेला है ये खेल ;




प्रभात में खिला उजला रूप

धुंध से निकली किरणों मे धूप

खेत में महका बसंत भरपूर

अम्बर आसमानी दिखा मगरूर ;




पंछियों से उड़े मतवाले पतंग

डोर को थामे मन मस्त मलंग

मुग्ध हूँ देख “प्रकृति के रंग”

कैसे भीगी रात की तरंग

ले आई है रश्मि की उमंग !!





........................................         सु..मन 

17 टिप्‍पणियां:

  1. खेत में महका बसंत भरपूर ....

    बहुत सुंदर ......

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  2. बहुत ही मस्त अभिव्यक्ति है।
    सन्देश और पीड़ा दोनों ही का सुन्दर समावेश किया है आपने!

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  3. सारगर्भित और सुंदर रचना , शुभकामनायें

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  4. सुंदर वासंतिक रचना ...... बसंतोत्सव की शुभकामनायें.....

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  5. महका बसंत बहुत सुंदर
    वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए

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  6. बसंती रंग सी फुहार है इस रचना मे। बसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें।

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  7. सुन्दर रचना...
    प्रकृति की पीड़ा और निस्वार्थ देन का सुन्दर सामंजस्य बया किय हे आपने.. बधाई..

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  8. फेस बुक में भी मित्रता का स्वागत .. धन्यवाद..
    आज चर्चामंच पर आपकी यह सुन्दर कविता है... आप वह भी आ कर अपने विचार लिखें...आभार ..
    http://charchamanch.blogspot.com

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