अश्क बनकर बह गए जिन्दगी के अरमां
चाहतें अधूरी रह गई इसी दरमियां
खाबों का घरौन्दा टूट कर बिखर गया
हमसे हमारा साया ही जैसे रूठ गया
फूल भी जैसे अब न बिखेर पाये खुशबू
कांटे ही कांटे हैं जीवन में जैसे हरसू
दिल जैसे रो रहा पर होंठ मुस्कराते
गम-ए-जिन्दगी का ज़हर पीते जाते
इस चमन से आज ये ‘सुमन’ है पूछे
क्या पाया है उसने जिन्दगी से मिल के
क्या पाया है उसने जिन्दगी से मिल के............
सु..मन