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रविवार, 13 मई 2012

दर्द





















दर्द अब पत्थर हो गया है
आँखें वीरान पथरीली जमीन

अहसास इकहरे ही घूमते रहते हैं
इस छोर से उस छोर
अपने अस्तित्व की तलाश में...

लहू तेजाब सा रगों में बावस्ता है
दिल झुलस रहा आहिस्ता-आहिस्ता
जख्म से नासूर बनने तक...

जाने कितनी साँस बाकी है अभी
जाने और कितना दर्द पत्थर होने को है...!!  




सु-मन



मंगलवार, 1 मई 2012

इंसान ओढ़े है नकाब
















आज चारों ओर
देखने को मिलते हैं
नकाब ओढ़े इंसान |

अक्सर 
फाईलों के ढेर में
अपने सर को छुपाए
दिखाई देते हैं जो
निर्बल असहाय से
काम के बोझ तले दबे |

पर स्वत: ही
बदल जाता है
उनका स्वरूप
ज्यूँ ही
मेज के नीचे से
सुनाई देने लगती है
उनको
हरे कागजों की सरसराहट |

तब
बदल जाता है
उनका चेहरा
और ओढ़ लेता है
इक नकाब
आँखों में
आ जाती है
एक चमक
धीरे –धीरे
खिसकने लगता है
उनके मेज पर से
फाईलों का ढेर...!!


सु-मन