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शनिवार, 9 अगस्त 2014

भैया सुनो !

Bhaiyu आपके लिए 










भैया सुनो !
नहीं जानती
कि क्यूँ कर
शुरू हुआ होगा
ये रक्षा बन्धन
कब,किस वजह से
बाँधी होगी किसी बहन ने
अपने भाई की कलाई पर
पहली राखी |

जानती हूँ
तो बस इतना
कि कच्चे धागे की डोरी को
बुना है मैंने
विश्वास के ताने बाने से
लगाए हैं इसमें  
अपने एहसास के रंग
और बांध दी है
तुम्हारी लम्बी उम्र की
गुढी गाँठ |

बदले इसके
नहीं मांगती कुछ
सिवाए इसके
कि ता-उम्र सम्भाले रखना
ये पवित्र बन्धन
मेरी ‘राखी’ को ना होने देना तुम राख !!


तुम्हारी बहन
सु-मन
(मेरी इस रचना को राजस्थान की Daily News अखबार के 'खुशबू' अंक में प्रकाशित करने के लिए वर्षा मिर्ज़ा जी का बहुत बहुत आभार)