मन !
सब कुछ तय था पहले से ही | मिलना, जुदा होना..फिर
, फिर से मिलना | सब कुछ तयबद्ध तरीके से हुआ | वक़्त ने करीने से तय कर रखा है सब
| पल पल का हिसाब दिन और रात के खानों में तरतीब से रख दिया है अपनी अलमारी में |
ज्यादा भूल भी न हुई होगी बस लिखना भर था पल पल का हिसाब जिन्दगी की पोथी में ,
जिसको जीना है हमको उन पलों के हिसाब से जो हमारे हिस्से में आये है जीने के लिए |
मिलन जुदाई और फिर मिलन इन सबके बीच देखो तो कुछ भी नहीं बदला | वही मैं..वही
तुम..वही सब रत्ती भर भी फर्क नहीं | हाँ बदला तो सिर्फ वो वक़्त ..वो पल जो हमने
जीया | अलमारी के खानों का धीरे धीरे खाली होना शायद बदलाव है | भीतर तो कुछ भी
नहीं बदला ..बाहर जो कुछ है बस यही है |
जीना तो पड़ता है मिलन हो या जुदाई, साँस आती है
चली जाती है बेखबर इसके कि हम जीना चाहते हैं या नहीं | वक़्त की रिहाई का पल भी तय
कर रखा है ..होगा अलमारी के किसी खाने में अपनी बारी के इंतजार में ..है ना !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-३)