खाली को भरने की कवायद में भरते गए सब कुछ अंदर । कुछ चाहा कुछ अनचाहा । भर गया सब..बिलकुल भरा प्रतीत हुआ, लेश मात्र भी जगह बाकी ना रही । फिर भी उस भरे में कुछ हल्कापन था । कुछ था जो कम था...दिखने में सब भरा भरा..फिर खाली खाली सा । भरे की तलाश कम नहीं हुई ..भटकते रहे उसकी तलाश में । जो मिला भर लिया अंदर..खाली को भरना भर था । भरता गया खालीपन अंदर..पूरा भर गया... तलाश ख़त्म ना हुई | भरे हुए में शेष की मौजूदगी हमेशा भरती है कुछ अंदर |
भरे हुए खालीपन में अभी और जगह बाकी है !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-५)