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सोमवार, 28 मई 2018

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (१४)




















असल में हम अपने ही कहे शब्दों से धोखा खाते हैं और हमारे शब्द हमारी चाह से ।

हम सब धोखेबाज़ हैं खुद अपने !!

सु-मन