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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

सीले से लफ्ज़























यूँ ही दरवाजे पे  दी दस्तक

कुछ बीते लम्हों ने

खोला .....तो देखा

कुछ सीले सीले से लफ्ज़

मेहमां बनकर

खड़े हैं सामने मेरे

समेट कर हथेली पर

ले आई मैं उनको अन्दर

यादों के सरहाने रख दिया है अब उनको भी.......!!


सु-मन 

14 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है!...बहुत ही सुन्दर कल्पना!

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  2. यादें अक्सर इसी तरह से आती है.....कभी दस्तक देकर तो कभी दबे पांव....हम खुद को अचानक एक दूसरे जहाँ में खडा पाते हैं.....वो जहाँ जो कभी हकीकत हुआ करता था...बहुत सुन्दर पंक्तियाँ लिखी सुमन आप ने....बहुत सुन्दर

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  3. वाह ...अनुपम भाव संयोजन लिए हुए बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  4. ये लफ़्ज़ जब उतरेंगे मन में, तो एक खाब सच होगा .. और आएगी नींद भींगी भींगी सी।

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  5. बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई

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  6. बहुत सुंदर एहसास छलकाती पंक्तियाँ......

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  7. उन स्मृतियों और उनसे जुड़े शब्दों को यथासंभब सहेज कर रखा जाये।

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  8. वाह भीने भीने अहसासों से सराबोर रचना

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