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शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

शब्द


शब्द, शब्दों में तलाशते हैं मुझे
और मैं ...उन शब्दों में तुम्हें !

रात जर्द पत्ते सी शबनम को टटोलती
चाँद जुगनू सा मंद मंद बुझा सा
नदी खामोश किनारों को सहलाती हुई
तब दूर कहीं सन्नाटे के जंगल में
सुनाई देता है मुझे दबा सा
कुछ अनकहे अनसुने शब्दों का शोर
धूमिल सी अधकच्चे विचारों की पगडंडी
उस शोर की तरफ बढ़ते अनथक दो कदम
कदम, कदमों में थामते हैं मुझे
और मैं...उन क़दमों में तुम्हे !

शब्द, शब्दों में तलाशते हैं मुझे
और मैं ...उन शब्दों में तुम्हें !!

सु-मन

(Special thanks to Manuj Ji for giving his voice to my words)



36 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द, शब्दों में तलाशते हैं मुझे ...
    शब्‍दों का संसार ....

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    1. सही कहा सदा जी ..... शब्दों का संसार ...हर तरफ बस शब्दों का अनथक कारवां

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  3. उत्तर
    1. हांजी रश्मि जी ..शब्द बहुत सुंदर होते हैं ..और इन्ही शब्दों की वजह से भाव कविता बन प्रकट होते हैं .. जादूगरी शब्दों की है बस

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  4. बहुत बढ़िया... प्रशंसनीय प्रस्तुति....:)

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  5. मन को कहना था शब्दों में,
    तुम्हें समझना था शब्दों में,
    मौन खड़ा सन्ताप कर रहा,
    उसको बहना था शब्दों में।

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  6. उत्तर
    1. अरुणा जी ...शब्दों की माला में आपके शब्दों का फूल भी जुड गया ..शुक्रिया

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  7. ...बहुत सुन्दर शब्दों की माला!

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  8. अच्छे शब्दों को भावपूर्ण-गहन आवाज़ की अभिव्यक्ति मिलती है तो लगता है, सुनते सुनते कहीं हम अपनेआप में ही खो जाएँ.. और यहीं से शुरू होती है आत्म-संवाद की प्रक्रिया.... सुमन जी और आवाज़ के धनी मनुज जी को अभिनन्दन.... - पंकज त्रिवेदी

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  9. बिखरे जज्बातों को समेट कर बहुत ही खुबसूरती से सजा दिया..बहुत सुन्दर

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  10. शब्दों के सुंदर सयोजन से अदभुत कविता का सृजन बहुत खूबसूरत है.

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  11. धव्दों का अदभुद संयोजन |सुन्दर भाव |
    आशा

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