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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

वक्त की तासीर














दिन गरम है अब 
और रातें ठण्डी 

सुना है -
सूरज को लग गया है 
मुहब्बत का रोग 
सुलगने लगा है दिन भर 

शाम की माँग में 
टपकने लगा है 
उमस का सिन्धूर 
आसमां रहने लगा है ख़ामोश 

रात कहरा कर 
ढक लेती है 
ओस का आँचल 
चाँद भटकता है तन्हा रातभर 
****************

बदल रहा है मौसम शायद 
वक्त के बयार की तासीर बदल रही है !!


सु-मन 





12 टिप्‍पणियां:

  1. वक्त कहाँ सदा निर्मम रहता है, वह भी पिघलता है।

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  2. मौसम के साथ तासीर बदल जाती है...फाल्गुन चढ़ गया है...

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  3. मौसम को आना और जाना है....पर हम उसी के द्वन्द में ठगे जाते हैं....

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  4. बहुत सुंदर बदलते मौसम का तासीर.....

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार।

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  6. मुहब्बत का रोग लग जाए तो होश कहाँ रहता है ...
    सुन्दर रचना ...

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  7. रात जब आती है
    अजीब सा सुकून लाती है..

    गहरा सन्नाटा इतना कि
    खुद का अहसास नहीं होता
    गम सीने से लगा रहता है
    और दर्द नहीं होता
    जिस्म पिंघल जाता है
    बस एक सोच तैरती रहती है

    रात जब आती है
    अजीब सा सुकून लाती है..

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