दिन गरम है अब
और रातें ठण्डी
सुना है -
सूरज को लग गया है
मुहब्बत का रोग
सुलगने लगा है दिन भर
शाम की माँग में
टपकने लगा है
उमस का सिन्धूर
आसमां रहने लगा है ख़ामोश
रात कहरा कर
ढक लेती है
ओस का आँचल
चाँद भटकता है तन्हा रातभर
****************
बदल रहा है मौसम शायद
वक्त के बयार की तासीर बदल रही है !!
सु-मन
वक्त कहाँ सदा निर्मम रहता है, वह भी पिघलता है।
जवाब देंहटाएंमौसम के साथ तासीर बदल जाती है...फाल्गुन चढ़ गया है...
जवाब देंहटाएंवाह अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबदलते मौसम की तासीर भी अलग है.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : पंचतंत्र बनाम ईसप की कथाएँ
मौसम को आना और जाना है....पर हम उसी के द्वन्द में ठगे जाते हैं....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बदलते मौसम का तासीर.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार।
जवाब देंहटाएंमुहब्बत का रोग लग जाए तो होश कहाँ रहता है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
Wakai...mausam badal gaya hai
जवाब देंहटाएंलाज़वाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंरात जब आती है
जवाब देंहटाएंअजीब सा सुकून लाती है..
गहरा सन्नाटा इतना कि
खुद का अहसास नहीं होता
गम सीने से लगा रहता है
और दर्द नहीं होता
जिस्म पिंघल जाता है
बस एक सोच तैरती रहती है
रात जब आती है
अजीब सा सुकून लाती है..
बढ़िया!!
जवाब देंहटाएं