कुछ क़तरे हैं ये जिन्दगी के.....जो जाने अनजाने.....बरबस ही टपकते रहते हैं.....मेरे मन के आँगन में......
Bahut khoob, khoobshurar ahsas
शुक्रिया आपका
bahut badiya panktiya likhi aapne suman ji
पसंद करने के लिए शुक्रिया अशोक खत्री जी
गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती रचना !
Bahut khoob--Thode shabdon me bhari or gehra Dard
बहुत बहुत शुक्रिया ओम जी । बस आपका आशीर्वाद है यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन चाहे कहीं भी तुम रहो; तुम को न भूल पाएंगे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ब्लॉग बुलेटिन का शुक्रिया
बहुत सुन्दर सुमन जी ...
शुक्रिया शालिनी जी
बेढब यादें जिल्द सी ...... शायद समेटे रखती हैं या फिर बस आदत। गहरे अहसास वाली कविता है। शुभ कामनाये आपको
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।-- आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-06-2014) को "बैल बन गया मैं...." (चर्चा मंच 1632) पर भी होगी!--हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
जीवन की अनकही पीड़ा को व्यक्त करतीप्रभावपूर्ण और गहन अनुभूति की रचनाबहुत सुन्दरउत्कृष्ट प्रस्तुतिबधाई------आग्रह है---- जेठ मास में--------
तो यह ख़ामोशी बाहर ही बाहर की ,सारे शब्द ज़िल्द में बँधे वहीं के वहीं - बस खुलने की कसर है !
खामोशी में ही गहरा अहसास होता है !New post मोदी सरकार की प्रथामिकता क्या है ?new post ग्रीष्म ऋतू !
दिल की गहराई से निकली रचना ...उम्दा अभिव्यक्ति...!!
जिल्द सी यादें और अहसासों की किताब , वाह सुन्दर प्रयोग ।
वाह सुमन ..आखिर की दो पंक्तियाँ ...जान हैं रचना की ..बहोत खूब...!!!
बहुत बढ़िया..
बेहतरीन
Bahut khoob, khoobshurar ahsas
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका
हटाएंBahut khoob, khoobshurar ahsas
जवाब देंहटाएंBahut khoob, khoobshurar ahsas
जवाब देंहटाएंbahut badiya panktiya likhi aapne suman ji
जवाब देंहटाएंपसंद करने के लिए शुक्रिया अशोक खत्री जी
हटाएंगहराई से निकली मन को गहरे तक छूती रचना !
जवाब देंहटाएंBahut khoob--Thode shabdon me bhari or gehra Dard
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया ओम जी । बस आपका आशीर्वाद है यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें ।
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन चाहे कहीं भी तुम रहो; तुम को न भूल पाएंगे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन का शुक्रिया
हटाएंबहुत सुन्दर सुमन जी ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शालिनी जी
हटाएंबेढब यादें जिल्द सी ...... शायद समेटे रखती हैं या फिर बस आदत। गहरे अहसास वाली कविता है। शुभ कामनाये आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-06-2014) को "बैल बन गया मैं...." (चर्चा मंच 1632) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
जीवन की अनकही पीड़ा को व्यक्त करती
जवाब देंहटाएंप्रभावपूर्ण और गहन अनुभूति की रचना
बहुत सुन्दर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई------
आग्रह है---- जेठ मास में--------
तो यह ख़ामोशी बाहर ही बाहर की ,सारे शब्द ज़िल्द में बँधे वहीं के वहीं - बस खुलने की कसर है !
जवाब देंहटाएंखामोशी में ही गहरा अहसास होता है !
जवाब देंहटाएंNew post मोदी सरकार की प्रथामिकता क्या है ?
new post ग्रीष्म ऋतू !
दिल की गहराई से निकली रचना ...उम्दा अभिव्यक्ति...!!
जवाब देंहटाएंजिल्द सी यादें और अहसासों की किताब , वाह सुन्दर प्रयोग ।
जवाब देंहटाएंवाह सुमन ..
जवाब देंहटाएंआखिर की दो पंक्तियाँ ...जान हैं रचना की ..बहोत खूब...!!!
बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएं