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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

वक्त की तासीर














दिन गरम है अब 
और रातें ठण्डी 

सुना है -
सूरज को लग गया है 
मुहब्बत का रोग 
सुलगने लगा है दिन भर 

शाम की माँग में 
टपकने लगा है 
उमस का सिन्धूर 
आसमां रहने लगा है ख़ामोश 

रात कहरा कर 
ढक लेती है 
ओस का आँचल 
चाँद भटकता है तन्हा रातभर 
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बदल रहा है मौसम शायद 
वक्त के बयार की तासीर बदल रही है !!


सु-मन