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शुक्रवार, 24 जून 2016

एक हद तक










एक हद तक
जीये जा सकते हैं सब सुख
एक हद तक ही 
सहा जा सकता है कोई दुख
सरल सी चाही हुई जिंदगी में 
मिलती हैं कई उलझने 
बेहिच बदल देते हैं हम रास्ता 
मनचाहे को पाने के लिए


भूल जाते हैं अक्सर
पाने के लिए कुछ खोने की गहरी बात 
तय करना चाहते हैं खुद
अपने आकाश का दायरा 
छोड़ देते हैं अपना धरातल 
निष्क्रिय समझ कर लेते किनारा


आज को कल में बदलते देख 
बदल जाते हैं हम भी 
करते है भूलने की कोशिश 
भूत के गोद में बिताये मुश्किल दिनों को


बीतते जाते हैं यूँ ही 
साल दर साल 
तय होती रहती है सोच की हदें 
ख़्वाब और ख़याल के मायने जान कर
भविष्य के गर्भ में छिपा है क्या कुछ 
जाने बगैर चाहते हैं हम 
अपने हिस्से में सिर्फ ख़ुशी


जो बीता, वो था कभी भविष्य 
जो आज है भविष्य 
होगा कल का वर्तमान 
हर समय की तय होती है एक हद 
सुख और दुख के बंटवारे के साथ 
भोगा हुआ सुख 
बढ़ा देता है और सुखों की कामना 
भुलाया हुआ दुख
चाह कर भी नहीं हो पाता हमसे जुदा


दरअसल,
एक हद तक 
भुला जा सकता है कोई भोगा दुख
एक हद तक ही 
की जा सकती है किसी सुख की कामना !!
********

सु-मन 


16 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut sunder

    http://anoopsuriji.blogspot.in

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  2. वाकई ख़याल की एक सीमा होती है, एक हद.. वो एक हद तक ही जा सकता है.

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  3. सच किसी भी बात की एक हद होती है..
    बहुत सुन्दर रचना

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  4. जीवन की हदों को बखूबी उकेरा है आपने
    बधाई स्वीकार करें...

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन की हदों को बखूबी उकेरा है आपने
    बधाई स्वीकार करें...

    जवाब देंहटाएं
  6. जीवन की हदों को बखूबी उकेरा है आपने
    बधाई स्वीकार करें...

    जवाब देंहटाएं
  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " खालूबार के परमवीर को समर्पित ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं

  9. बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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