तू ही प्रमाण , तू ही शाख
तू ही निर्वाण , तू ही राख
तू ही बरकत , तू ही जमाल
तू ही रहमत , तू ही मलाल
तू ही रहबर , तू ही प्रकाश
तू ही तरुबर , तू ही आकाश
तू ही जीवन , तू ही आस
तू ही सु-मन , तू ही विश्वास !!
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मन में विश्वास है और विश्वास में तुम
मेरे आकारित परिवेश के तुम एकमात्र प्रहरी हो ।
सु-मन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (29-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत प्रार्थना
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