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शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

तुम और मैं















अनगिनत प्रयास के बाद भी
अब तक
'तुम' दूर हो 
अछूती हो 
और 'मैं' 
हर अनचाहे से होकर गुजरता प्रारब्ध ।

एक दिन किसी उस पल 
बिना प्रयास 
'तुम' चली आओगी
मेरे पास 
और बाँध दोगी 
श्वास में एक गाँठ ।

तब तुम्हारे आलिंगन में 
सो जाऊँगा 'मैं' 
गहरी अनजगी नींद !
*****

उनींदी से भरा हूँ 'मैं' , नींदों से भरी हो 'तुम' । 
चली आओ कि दोनों इस भरेपन को अब खाली कर दें !!

सु-मन