अनगिनत प्रयास के बाद भी
अब तक
'तुम' दूर हो
अछूती हो
और 'मैं'
हर अनचाहे से होकर गुजरता प्रारब्ध ।
एक दिन किसी उस पल
बिना प्रयास
'तुम' चली आओगी
मेरे पास
और बाँध दोगी
श्वास में एक गाँठ ।
तब तुम्हारे आलिंगन में
सो जाऊँगा 'मैं'
गहरी अनजगी नींद !
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उनींदी से भरा हूँ 'मैं' , नींदों से भरी हो 'तुम' ।
चली आओ कि दोनों इस भरेपन को अब खाली कर दें !!
सु-मन