बेज़िस्म नज़्म
सब ख़ामोश है आज
'मन' भी लफ्ज़ भीफड़फड़ा रहा तन्हा
डायरी का पन्ना खाली
सुबह की एक याद
ज़ेहन को कुतर रही
आहिस्ता - आहिस्ता
कर ही देगी शायद खाली
मेरा ये भरा सा 'मन'
पलकों के कोरों में अभी
कुछ अटक के निकल गया
धुँधला कर गया शायद
याद का कड़वा हिस्सा
जेहन की कुरचन भी
थोड़ी थमने लगी है अब
बावजूद इसके -
पन्ना ख़ामोश है
लफ्ज़ बेजान
और नज़्म बेज़िस्म
कि 'मन' आज उदास बहुत है ।।
सु-मन
पढ़ें ~ Day 6
सार्थक और सटीक।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (02-04-2020) को "पूरी दुनिया में कोरोना" (चर्चा अंक - 3659) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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