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बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

यूं ही कभी !

कुछ पल दोस्ती के नाम

यूं ही कभी

इन बन्द आखों में

आती है सामने

कुछ बीती यादें

कुछ जीये हुए पल;

वो हंसना वो रोना

उठकर रातों को

बातें सुनाना

याद है आता

अब इन दिनों में

जीकर जो गुजर गया

बीते हुए दिनों में;

हर पल दिल में

कसक सी उठती है

काश होते पास वो

जिनसे अब दूरी है;

हर घड़ी मन में

ख़याल ये आता है

गर होता है बिछड़ना

खुदा क्यों मिलाता है;

हर पल उनकी यादों में

अब हम तड़पते हैं

पर शायद सभी मिलकर

यूं ही बिछड़ते हैं...............!!


सु..मन 

3 टिप्‍पणियां:

  1. यूं ही बिछड़ते हैं........

    यह बात कह कर आपने बहुत बड़ी हक़ीक़त कह दी |

    एक बात और,
    आप जहाँ हैं वहाँ हर कोई रचनाकार बन जायेगा |
    कुछ दिनों पहले कुल्लू में कविता पढ़ने का मौक़ा मिला था |
    बहुत पसंद आई वो जगह | आपका कुल्लू - मंडी - हिमाचल |

    शुक्रिया |

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  2. is kavita ko padhkar man kahin ruk sa gaya hai .. kya kahun , nishabd hoon ...

    vijay

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