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बुधवार, 10 मार्च 2010

ढलती शाम

ढलती शाम

अकसर देखा करती हूँ
शाम ढलते-2
पंछियों का झुंड
सिमट आता है
एक नपे तुले क्षितिज में
उड़ते हैं जो
दिनभर
खुले आसमां में
अपनी अलबेली उड़ान
पर....
शाम की इस बेला में
साथी का सानिध्य
पंखों की चंचलता
उनकी स्वर लहरी
प्रतीत होती
एक पर्व सी
उनके चुहलपन से बनती
कुछ आकृतियां
और
दिखने लगता
मनभावन चलचित्र
फिर शनै: शनै:
ढल जाता
शाम का यौवन
उभर आते हैं
खाली गगन में
कुछ काले डोरे
छिप जाते पंछी
रात के आगोश में
उनकी मद्धम सी ध्वनि
कर्ण को स्पर्श करती
निकल जाती है
         दूर कहीं..................!!





सु..मन 

19 टिप्‍पणियां:

  1. पंछियों का झुंड ...सिमट आता है..एक नपे तुले क्षितिज में....
    ....खुले आसमान में अपनी अलबेली उडान पर....
    ढल जाता है शाम का यौवन.....
    ..उनकी मद्धम सी ध्वनि...कर्ण को स्पर्श करती निकल जाती है..दूर कहीं....

    सुमन जी, आपके पास शब्दों का चयन करने की अदभुत कला है..

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  2. रात के आगोश में
    उसकी मद्धम सी ध्वनि
    कर्ण को स्पर्श करती हुई
    निकल जाती है'

    न जाने कितनी ध्वनियाँ अनसुनी रह जाती हैं इस शोर के माहौल में.

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  3. पंछी का कलरव, सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  4. बहुत अच्छी बुनावट और शैली द्वारा प्रस्तुत
    एक मन-भावन रचना
    शब्द शब्द अनुभूति से भरपूर ...

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  5. Behad sundar shabd shilp..pahle shaam ka aur badme ratka nazara aankhon ke aage se ghoom gaya!

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  6. अच्छा प्रयास है। इसी प्रकार लिखती रहें। मेरी शुभकामनाएं !

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  7. मनमोहक एवं भावमय चित्रण

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  8. अच्छा लिखा है मीत जी अपने..उही लिखती रहे

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  9. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  10. उत्तम रचना----समस्त रचना सामान्य बोलचाल के सुन्दर समायोजित शब्दों में है, परन्तु अन्त में गम्भीर सन्स्क्रतनिष्ठ ’कर्ण’ शब्द पैबन्द सा लगता है । यदि किसी विशेष प्रयोजन से नहीं है तो परिवर्तन योग्य है .

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  11. मन को सुकून देती हुई अच्छी रचना.....बधाई

    कमेन्ट से वर्ड वेरिफिकेशन की सेट्टिंग हटा दें..टिप्पणी देने वालों को आसानी रहेगी

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  12. vakai prashnsha kiye bina nahi raha sakti. bahut sunder..........

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