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गुरुवार, 21 मार्च 2013

कल्पवृक्ष












काश ! होता एक ऐसा भी
कल्पवृक्ष
जिसकी शाख पर
लटकी होती
अनगिनत इच्छाएँ
और
उन इच्छाओं को
तोडने के लिए
सींचना पड़ता उसको
प्यार और संवेदना के जल से
तो हर बेबस माँ
रखती उसे हरा-भरा
ताउम्र
और तोड़ लेती
अपने बच्चे की
हर इच्छा
पूरा कर देती
उसका हर सपना

होता यूँ भी
कि जब-जब
गिरता उसका हर आँसू
उसकी जड़ों में 
झरते उसकी शाख से
कागज के हरे हरे पत्ते
तो खरीद लाती वो 
मासूम आँखों में बसा
एक आशियाना ।।
.................

संवेदना के सागर तले झर रही हैं आँखें
कल्पवृक्ष से अब भी झर रहे हैं पत्ते .....!!

*****


सु-मन






23 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत खूबसूरत विचार संजोये हैं।

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  2. काश प्रकृति हो जाती इतनी संवेदनशील..

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  3. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  4. वाह बेहतरीन भाव संयोजन लिए गहन भाव अभिव्यक्ति...

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  5. इच्छा को पूर्ण करने की तलाश कभी खत्म नहीं होती

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  6. कल्पना बहुत सुन्दर है सु-मन,पर मन की और इच्छाओं की कोई सीमा कहाँ? नियंत्रण तब रहेगा जब पूरी होने के लिए प्रयास और पुरुषार्थ की शर्त हो!

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  7. सु-मन ही कर सकता है इतनी सुन्दर कल्पना !
    सुन्दर रचना ..बहुत बहुत आभार !

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  8. संवेदना की गहराईयों को उजागर करती रचना
    सार्थक कहन सुंदर शब्द चित्र
    बहुत बहुत बधाई

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  9. झरेंगे पत्ते....फिर पल्लवित होंगी शाखें....
    नव सु-मन खिलेंगे....नियम है प्रकृति का.

    अनु

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  10. झर रही है भावनाएं कविता की पंक्तियों से ...बहुत सुन्दर

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  11. बहुत सुंदर ! जितनी सार्थक रचना उतनी ही कलात्मक ! शुभकामनायें !
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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