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मंगलवार, 9 जुलाई 2013

बरसना लाज़मी है , हम दोनों के लिए शायद !
















रात घिर आई है 
अधगीली सड़क पर 
आवाजाही कम है ज़रा 
सोडियम लैम्प की पीली रौशनी में 
भिन-भिनाने लगे हैं कीट पतंगे 
सड़क के गीले किनारों पर 
तैर रहे सूखे पत्तों में 
आने लगी है कुछ नमी |

रात बरसेगा वो 
इन हवाओं ने कहा है अभी 
मैं बालकनी में बैठ 
उसके इन्तजार में हूँ 
बरसेगा जरूर बाहर न सही .. भीतर |
***
बरसना लाज़मी है , हम दोनों के लिए शायद !!


सु..मन 


42 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए आभार!

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  2. सुंदर शब्दचित्र है ..
    शुभकामनायें !!

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  3. बाहर बरसेगा तो ओखों के गीलेपन को छुपा लेंगे ये कहकर..कि ये तो छींटे है बौछार के...
    बढ़ि‍या लि‍खा है...सुंदर शब्‍दचि‍त्र

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    उत्तर
    1. Rashmi ji .. सही कहा और अंदर बरसा तो किसी को गुमां भी न होगा । shukriyaaaa

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  4. Wow!! deep lines...with so many meanings!!
    One of the greatests from you :)

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  5. बाहर भी सावन,भीतर भी सावन....

    बहुत सुन्दर
    अनु

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  6. ब्लॉग बुलेटिन के माध्यम से यहाँ पहुंचना अच्छा लगा :)

    जवाब देंहटाएं
  7. हाँ.....
    "बरसना लाज़मी है , हम दोनों के लिए शायद !"

    बहुत खूब....

    जवाब देंहटाएं
  8. शुभ प्रभात
    भावुक करती रचना

    सादर

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  9. शुभकामनायें आदरेया-
    उम्दा प्रस्तुति-

    जवाब देंहटाएं
  10. रात बरसेगा वो
    इन हवाओं ने कहा
    बरसू मै भी
    रिमझिम-रिमझिम
    तरस रहा मन
    भीगूँ मै भी,
    बरस-बरस बरसो
    हे अमृत घन
    मन सु-मन के
    आंगन में ....!

    आपकी रचना से कुछ मेल खाती हुई कुछ पंक्तियाँ
    या टिप्पणी स्वरूप समझे ..आभार !

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  11. बहुत ही सुन्दर, मन घिर घिर कर बरसे।

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  12. सबसे पहले तो माफ़ी चाहता हूँ... क्या करूँ... आजकल टाइम ही नहीं मिल पाता है...very impressive

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    उत्तर
    1. माफ़ी की बात नहीं संजय जी , देर से सही आपने पढ़ा सराहा यही काफी है ।शुक्रिया

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