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शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

इक ख़याल की कब्र पर












रात फिर
इक ख़याल की कब्र पर
बैठे रहे कुछ लफ्ज़,
करते रहे इन्तजार उन एहसास का
जो दब कर गुम हो गए थे
उस वक्त उस आखिरी घड़ी,जब
ख़याल, ख़याल न रह कर
कब्र में दफ़न हों गया था उस रोज ....

एक शबनमी बूँद कुछ बीते लम्हों की
उन लफ़्ज़ों पर पड़ी कि अचानक
साँस लेने को कुछ सामान मिला
लरजने लगे वो मिट्टी को कुरेदते हुए
बरसों से दबे ख़याल को सहलाने की खातिर...

पर रूह से बेजान ख़याल ख़ामोश लेटा
किस करवट बदलता भला
कैसे निकल आता उस कब्र से
जिसे अपने हाथों से दफ़न किया था
उस रोज,उस फ़रिश्ते ने जाने क्या सोच कर .....

लफ्ज़ देर रात तक कब्र के सरहाने बैठ
ख़याल की बाहों में उतरने को बेचैन रहे
और ख़याल करता रहा इन्तजार फ़रिश्ते का
भोर की पहली किरण तक ....!!

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इक ख़याल की कब्र पर, लफ्ज़ अधलेटे हैं अभी
इक ख़याल को आज भी फ़रिश्ते का है इन्तजार !!
             *****



सु..मन 

34 टिप्‍पणियां:

  1. Wonderful and excellent-.....kuchh khayal ko aaj fariste kaa intjar hai....kksingh-www.kksingh1.blogspot.com

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  2. ख़याल लेंगे एक नज़्म की शक्ल.....
    ख्यालों को लाख दफ़न कर दो..कमबख्त मरते नहीं.....

    अनु

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  3. This one's beautiful and the bestest of yours I've read till now....

    Superb!!!

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  4. बढ़िया है आदरेया |
    शुभकामनायें-

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  5. बहुत ही खूबसूरत रचना खासकर अंतिम दो पंक्तियाँ

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  6. मेरी रचना को स्थान देने के लिए शुक्रिया

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  7. निःशब्द करती खुबसूरत एहसास फ़रिश्ता आएगा ही शुभकामना

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  8. कल 04/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  9. शानदार लिखा है |सुन्दर शब्द चयन |
    आशा

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  10. आओ, उनको गतिमय कर दो,
    शब्द ठिठक बैठे हैं कब से।

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  11. बहुत ख़ूबसूरत और भावमयी रचना...

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