Suman जीवन के चक्र के संग घुमते घुमते हम कहाँ पहुँच जाते है पता नहीं चलता हाँ ,पछतावा ज़रूर होता है रिश्तों के बदलते रंग को देख ...... क्यूंकि कुछ रंग ऐसे होते हैं जिनका फीका पड़ना बिलकुल भाता नहीं ....... इन्ही भावों को ख़ूबसूरती से उकेरा तुमने ...... गांठो को लेकर मैंने भी कुछ लिखा था ...पर अभी तक उसे पब्लिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी हूँ ....और शायद 'आकर्षण का सिंद्धांत ' मुझे ऐसे करने से रोकता ही रहेगा ....... यानी दर्द उकेरेंगे तो और दर्द ही मिलेगा ........तो अच्छा होगा खुशियाँ चाहे छोटी हों .....पर उन्हें उभरने का अवसर देना चाहिए :) Echo (गूँज) होके बहुत सी खुशियाँ हमारे पास आएँगी ........पूनम माटिया 'पूनम'
पूनम जी fb frnd की एक कविता पढ़कर जो मन में जो उपजा उसी को शब्दों में ढाल दिया ।अक्सर होता है कि कहीं कुछ पढू तो शब्दों में गति आ जाती है और तब ये नहीं सोचती गम पर लिखूं या ख़ुशी पर ।शब्द बस उतरते जातें हैं पन्नों पर । आपकी बात भी कुछ मायनों में सही है कि ख़ुशी लिखोगे तो पाठक के चेहरे पर भी ख़ुशी बिखरेगी ।पर कभी कभी दर्द पढ़ने पर आह के साथ वाह भी निकल जाती है । :) आपकी टिप्पणी से positiveness मिली ..जल्द ही ख़ुशी वाली लिखूंगी और आपको पढ़ाऊँगी ।फिर ढेर सारी ख़ुशी आएगी echo होकर ..है ना ।
भावों की अभिव्यक्ति और शब्दों का चयन बहुत ख़ूब ..सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी
हटाएंशुक्रिया शास्त्री जी
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द व भाव हैं. कुछ रिश्ते अक्सर दर्द दे जाते हैं...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंSuman जीवन के चक्र के संग घुमते घुमते हम कहाँ पहुँच जाते है पता नहीं चलता हाँ ,पछतावा ज़रूर होता है रिश्तों के बदलते रंग को देख ...... क्यूंकि कुछ रंग ऐसे होते हैं जिनका फीका पड़ना बिलकुल भाता नहीं ....... इन्ही भावों को ख़ूबसूरती से उकेरा तुमने ...... गांठो को लेकर मैंने भी कुछ लिखा था ...पर अभी तक उसे पब्लिक करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी हूँ ....और शायद 'आकर्षण का सिंद्धांत ' मुझे ऐसे करने से रोकता ही रहेगा ....... यानी दर्द उकेरेंगे तो और दर्द ही मिलेगा ........तो अच्छा होगा खुशियाँ चाहे छोटी हों .....पर उन्हें उभरने का अवसर देना चाहिए :) Echo (गूँज) होके बहुत सी खुशियाँ हमारे पास आएँगी ........पूनम माटिया 'पूनम'
जवाब देंहटाएंपूनम जी fb frnd की एक कविता पढ़कर जो मन में जो उपजा उसी को शब्दों में ढाल दिया ।अक्सर होता है कि कहीं कुछ पढू तो शब्दों में गति आ जाती है और तब ये नहीं सोचती गम पर लिखूं या ख़ुशी पर ।शब्द बस उतरते जातें हैं पन्नों पर । आपकी बात भी कुछ मायनों में सही है कि ख़ुशी लिखोगे तो पाठक के चेहरे पर भी ख़ुशी बिखरेगी ।पर कभी कभी दर्द पढ़ने पर आह के साथ वाह भी निकल जाती है । :)
हटाएंआपकी टिप्पणी से positiveness मिली ..जल्द ही ख़ुशी वाली लिखूंगी और आपको पढ़ाऊँगी ।फिर ढेर सारी ख़ुशी आएगी echo होकर ..है ना ।
शुक्रिया सर
जवाब देंहटाएंWaah.... Bahut Sunder
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंलाजवाब !
जवाब देंहटाएंsundar bhavpurna rachna !
जवाब देंहटाएंसमय के साथ सब कुछ बदल गया है...बहुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंBahut sundar kavita..man ko chhuti hui..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंएकदम बढ़िया