बुत के समान
जिन्दा लाश बनकर
कब तक ढोते रहोगे
जिंदगी का कफ़न
आओ !
जड़ को चेतन में बदल कर
फूलों के जहाँ में
जीना सीखा दूँ
चलो !
मरीचिका के आईने को
पार कर देखो
दर्पण के पहलू में
अनेक बिम्ब दीखते हैं
संभल कर पोंछ दो
गर्द की परत
निखर आयेगी हर छवि
अंतस की गहराई में
करो और देखो
जिंदगी के दामन में
हज़ारों रंग बिखरे हैं
तुम्हारे लिए ..!!
सु-मन
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया योगी जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंअनु
शुक्रिया अनु दी :)
हटाएंभरपूर जिंदगी है इस रचना में !
जवाब देंहटाएंसकारात्मक सोच की कविता !
शुक्रिया वाणी mam ..मुझे ख़ुशी है कि आपने इस रचना को पूर्ण रूप से जाना ...
हटाएंवाह बहुत ही सुन्दर शब्दानुभूति
जवाब देंहटाएंदिल से आभार स्मिता जी
हटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका
हटाएंBehtreen....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी
हटाएंसुंदर पंक्तियाँ, सकरात्मक भाव...
जवाब देंहटाएंहंजी ..बहुत समय बाद सकारात्मक लिखा मैंने ...
हटाएंचंद शब्दों में सब कुछ ...........
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राहुल जी
जवाब देंहटाएंवाह ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंजड़ को चेतन में बदल कर फूलों के जहां में जीना सिखा दूँ .....
जवाब देंहटाएंसंभल कर पोंछ दो गर्द की परत ..... बहुत खूब @सुमन
ज़िन्दगी के हसीं रुख को जो देखें कभी .....ग़म खुद किनारा कर लेते हैं .........पूनम
शुक्रिया पूनम जी ...सही कहा आपने :)
हटाएंकल 25/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
शुक्रिया यश :)
हटाएंवाह... बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंपसंद करने के लिए शुक्रिया आपका
हटाएंZabardast..
जवाब देंहटाएंthnx Pari :)
हटाएंsuman shukriya bahut dino baad aayi aap mere blog par bahut acchha laga.
जवाब देंहटाएंtumhara lekhan sada hi kheenchta hai mujhe . sunder.
नमस्ते अनामिका जी ...वो व्यस्तता के कारण आजकल कम समय मिलता है ...पर मुझे भी आपका लेखन लुभाता रहा है ...आते जाते रहेंगे अब ..भले ही बहुत दिन बाद सही :)
जवाब देंहटाएंगहरी बात..
जवाब देंहटाएं