मुहब्बत पक्का ना थी
कभी कुछ गम
जमा हो जाता
कभी इकरार की हदें
नफ़ी हो जाती
कभी बेहिसाब मिलन के पलों को
गुणा कर
विरह के दिनों से
विभाजित कर देते
पर हल में जो भी शेष बचता
मुझे सिर्फ़ हमारा होने का सकूं देता...
हाँ , मुझे प्रिय है
हमारी मुहब्बत का ये समीकरण !!
सु-मन
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंवाह..लाज़वाब...
जवाब देंहटाएंसमीकरण बेहद सटीक लगा ........क्या बात है!
जवाब देंहटाएंBeautiful !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर !!
जवाब देंहटाएंकल 29/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
सही ....!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना :
जवाब देंहटाएंमोहब्बत में कोई मुसीबत नहीं है ,
मुसीबत तो ये है मोहब्बत नहीं है।
सुंदर .......
जवाब देंहटाएंइस समीकरण में .... मुहब्बत जो है
जवाब देंहटाएं.........बहुत बढिया
हर मुहब्बत के समीकरण का फलन एक ही तो होता है , अच्छी सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंbahut sunder samikaran..saarthak steek
जवाब देंहटाएंजोड़-बाकी-गुणा-भाग ,सब आ गया ,समीकरण बन गया - बस एक निश्चित उत्तर और निकल आए!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल को छूती हुयी बेहद खुबसूरत रचना ......!!!!
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