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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-१)











मन !

जानते हो, तुम कौन हो ? शायद नहीं और शायद ही मैं कभी परिभाषित कर पाऊं तुम्हें | जब कभी कोशिश की तुम्हें पाने की ..तुम्हें जानने की ...तुम खो गए ..अनभिज्ञ बन गए और जब कभी तुमसे दूर जाना चाहा ..तुम ख़ामोश साये की तरह साथ चलते रहे | मैं अक्सर तुमसे पूछती , तुम्हारे होने का सबब और जवाब में एक ख़ामोशी के सिवा कुछ नहीं मिलता | शब्दों को टटोलते हुए जब कभी मेरी ख़ामोशी धीरे – धीरे तुम्हारी ख़ामोशी में उतरती...कुछ शेष नहीं बचता ...जानते हो उस एक क्षण में एक वर्तुल मेरी रूह को घेर शब्द और ख़ामोशी के हर दायरे को पार कर जो रचता ..मुझे तुम्हारे होने का एहसास देता .... मुझे मुझसे मिला देता ....मुझे जीना सीखा देता | शब्द से ख़ामोशी तक के इस सफ़र की निर्वात यात्रा के मेरे एकल साथी मुझे यूँ ही अपनी पनाह में रखना !!

ये जो तेरे मेरे बीच की बात है ... बेवजह है शायद ...कुछ बेवजह बातें हर वजह से परे होती हैं... है ना ‘मन’ !!



सु-मन 

16 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा...या तो सब कुछ बेवजह सा लगता है या एक परिगूढ़ रहस्य.

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  2. शुरुआत बेहद अच्छी है लेकिन जैसे जैसे आपकी बात आगे बढ़ेगी तभी मर्म समझ आएगा !

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  3. बहुत सुन्दर मन को छूते अहसास...इंतजार अगली कड़ी का..

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  4. किसी के मन की थाह कभी कोई नहीं ले सकता है ..हाँ अपने मन को नियंत्रित करना जरुरी हैं सुकून के लिए ..
    बहुत बढ़िया

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  5. कल 23/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  6. बहुत कुछ बेवजह होते हुए भी कितनी वजहें रखता है ...

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  7. बेहद सुन्दर गहन भाव जो अपने साथ अंतर की गहराई तक ले जाते हैं और छोड़ देते हैं ऐसे निर्जन प्रदेश में जहाँ कल्पना की उंगली थाम आगे बढ़ने के लिये रास्ते ही रास्ते हैं ! बहुत सुन्दर लिखा है सुमन जी ! आभार !

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  8. "कुछ बेवजह बाते हर वजह से परे होती है " सही कहा है !

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