ख़ामोशी में बहुत कुछ
है अब ...सुनने को ....वो भी जो तब नहीं सुन पाई थी .....जब शब्द बात करते थे
....अब चारों पहर बस ख़ामोशी ही गुनगुनाती है हमारे बीच ...और राह तकते शब्द थक कर
सो जाते हैं गहरी नींद ......!!
(शब्दों का न होना
सालता है कभी कभी ....पर ख़ामोशी मन को बांधे है ...दोनों एक दूसरे के पूरक हैं
शायद)
सु-मन
एक रोके रहिये समय को, किनारे आकर लग जायेंगे प्रवाह के दोनों ओर..
जवाब देंहटाएं:))
हटाएंकभी कभी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है सुमन जी |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग में पधारें और जुड़ें |
मेरा काव्य-पिटारा
शुक्रिया प्रदीप जी ...
हटाएंआपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा
प्रदीप जी ..एक बात की जानकारी चाहती हूँ कि आपने ब्लॉग का लिंक कैसे डाला टिप्पणी में
हटाएंख़ामोशी की अपनी जुबाँ होती है ....और उसको समझते है अहसास !!!
जवाब देंहटाएंसही कहा अशोक जी ..शुक्रिया
हटाएंbahut badiya vichar...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता :)
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया यशवंत
जवाब देंहटाएंख़ामोशी कभी-कभी शब्दों से ज्यादा प्रभावशाली होती है
जवाब देंहटाएंmujhe ras aati hai khamosiya,bin kahe jindgi ko jalati-bujhati hasati-rulati.........bahut sundar aur prastuti
जवाब देंहटाएंबढिया ..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा!
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