लम्बी सर्द रात में
ऊँघता है चाँद तन्हा
जर्द पत्तों को संभाले
ओढ़ लेते है दरख्त
सफेद चादर
जब आता है दिसम्बर....
धूप की मिन्नतें करते
नज़र आते हैं सुबह
ओस के मेहमान
क्यारी के बेफूल पौधे
होते हैं कुछ उदास
जब आता है दिसम्बर....
मक्की की रोटी
चूल्हे पर है पकती
क्या खूब होता जायका
सरसों के साग का
मक्खन चुपड़ के
खिलाती है माँ
जब आता है दिसम्बर....
बीते ग्यारह मास
करता हर कोई याद
क्या खोया और पाया
होता ये एहसास
बीती को बिसार कर
बढ़ता नव वर्ष की ओर
जब आता है दिसम्बर.... !!
सु-मन
#बारह_मास_नवम्बर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01-01-2019) को "मंगलमय नववर्ष" (चर्चा अंक-3203) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
नववर्ष-2019 की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर दिसंबर का सुन्दर वर्णन।
जवाब देंहटाएंवाहहह.. लाज़वाब.. बेहद.सुंदर👌👌
जवाब देंहटाएंVery Nice.....
जवाब देंहटाएंबहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत...
Happy New Year
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंhttp://iwillrocknow.blogspot.com/
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंअक्सर लेखक अपनी पुस्तकों को बज़ट के अभाव में प्रकाशित नहीं करा पाते है। कई बार प्रकाशक की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते है। जिस कारण उनकी पांडुलिपी अप्रकाशित ही रह जाती है। ऐसी कई समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हम आपके लिए लाएं है स्पेशल स्वयं प्रकाशन योजना। इस योजना को इस प्रकार तैयार किया गया है कि लेखक पर आर्थिक बोझ न पड़े और साथ ही लेखक को उचित रॉयल्टी भी मिलेa। हमारा प्रयास है कि हम लेखकों का अधिक से अधिक सहयोग करें।
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वाह। बहुत खुब।
जवाब देंहटाएंराजीव उपाध्याय