कुछ मान्यताओं से बंधे हम, अक्सर उनसे जकड़ कर रह जाते हैं । भूल जाते हैं खुद को, उनके सहारे जीवन जीते हैं और कुछ हासिल न कर दुखी होते हैं । फिर एक क्षण, जाने कैसे उस जकड़न से छूट कर भारमुक्त हो जाते हैं । सच मानो ! उन कुछ मान्यताओं का भार सिर्फ देह पर ही नहीं , मन पर उससे कई गुणा होता है और जब उतरता है तो देह और मन दोनों साँस से भी हल्के हो जाते हैं । यूँ भारमुक्त होना प्रियकर होता है ।
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (१८)
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंएकदम ठीक कहा आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंHindi Poem
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